Tuesday 27 November 2018

गाय और शेर की ..प्रेरणादायक कहानी ...जय गुरुदेव




एक गाय घास चरने के लिए एक जंगल में चली गई। शाम ढलने के करीब थी। उसने देखा कि एक बाघ उसकी तरफ दबे पांव बढ़ रहा है। वह डर के मारे इधर-उधर भागने लगी। वह बाघ भी उसके पीछे दौड़ने लगा।

दौड़ते हुए गाय को सामने एक तालाब दिखाई दिया। घबराई हुई गाय उस तालाब के अंदर घुस गई। वह बाघ भी उसका पीछा करते हुए तालाब के अंदर घुस गया। तब उन्होंने देखा कि वह तालाब बहुत गहरा नहीं था। उसमें पानी कम था और वह कीचड़ से भरा हुआ था। उन दोनों के बीच की दूरी काफी कम हुई थी। लेकिन अब वह कुछ नहीं कर पा रहे थे। वह गाय उस किचड़ के अंदर धीरे-धीरे धंसने लगी। वह बाघ भी उसके पास होते हुए भी उसे पकड़ नहीं सका। वह भी धीरे-धीरे कीचड़ के अंदर धंसने लगा। दोनों भी करीब करीब गले तक उस कीचड़ के अंदर फस गए। दोनों हिल भी नहीं पा रहे थे। गाय के करीब होने के बावजूद वह बाघ उसे पकड़ नहीं पा रहा था।

थोड़ी देर बाद गाय ने उस बाघ से पूछा, क्या तुम्हारा कोई गुरु या मालिक है?

बाघ ने गुर्राते हुए कहा, मैं तो जंगल का राजा हूं। मेरा कोई मालिक नहीं। मैं खुद ही जंगल का मालिक हूं।

गाय ने कहा, लेकिन तुम्हारे उस शक्ति का यहां पर क्या उपयोग है?

उस बाघ ने कहा, तुम भी तो फस गई हो और मरने के करीब हो। तुम्हारी भी तो हालत मेरे जैसी है।

गाय ने मुस्कुराते हुए कहा, बिलकुल नहीं। मेरा मालिक जब शाम को घर आएगा और मुझे वहां पर नहीं पाएगा तो वह ढूंढते हुए यहां जरूर आएगा और मुझे इस कीचड़ से निकाल कर अपने घर ले जाएगा। तुम्हें कौन ले जाएगा?

थोड़ी ही देर में सच में ही एक आदमी वहां पर आया और गाय को कीचड़ से निकालकर अपने घर ले गया। जाते समय गाय और उसका मालिक दोनों एक दूसरे की तरफ कृतज्ञता पूर्वक देख रहे थे।


 वे चाहते हुए भी उस बाघ को कीचड़ से नहीं निकाल सकते थे क्योंकि उनकी जान के लिए वह खतरा था।

गाय समर्पित ह्रदय का प्रतीक है। बाघ अहंकारी मन है और मालिक सद्गुरु का प्रतीक है। कीचड़ यह संसार है। और यह संघर्ष अस्तित्व की लड़ाई है। किसी पर निर्भर नहीं होना अच्छी बात है लेकिन उसकी अति नहीं होनी चाहिए। आपको किसी मित्र,किसी गुरु, किसी सहयोगी की हमेशा ही जरूरत होती है।

🙏जयगुरुदेव🙏

Monday 12 November 2018

मेरा नया बचपन.....By subhadra kumari chouhan

बार-बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी।
गया ले गया तू जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी॥

चिंता-रहित खेलना-खाना वह फिरना निर्भय स्वच्छंद।
कैसे भूला जा सकता है बचपन का अतुलित आनंद?

ऊँच-नीच का ज्ञान नहीं था छुआछूत किसने जानी?
बनी हुई थी वहाँ झोंपड़ी और चीथड़ों में रानी॥

किये दूध के कुल्ले मैंने चूस अँगूठा सुधा पिया।
किलकारी किल्लोल मचाकर सूना घर आबाद किया॥

रोना और मचल जाना भी क्या आनंद दिखाते थे।
बड़े-बड़े मोती-से आँसू जयमाला पहनाते थे॥

मैं रोई, माँ काम छोड़कर आईं, मुझको उठा लिया।
झाड़-पोंछ कर चूम-चूम कर गीले गालों को सुखा दिया॥

दादा ने चंदा दिखलाया नेत्र नीर-युत दमक उठे।
धुली हुई मुस्कान देख कर सबके चेहरे चमक उठे॥

वह सुख का साम्राज्य छोड़कर मैं मतवाली बड़ी हुई।
लुटी हुई, कुछ ठगी हुई-सी दौड़ द्वार पर खड़ी हुई॥

लाजभरी आँखें थीं मेरी मन में उमँग रँगीली थी।
तान रसीली थी कानों में चंचल छैल छबीली थी॥

दिल में एक चुभन-सी थी यह दुनिया अलबेली थी।
मन में एक पहेली थी मैं सब के बीच अकेली थी॥

मिला, खोजती थी जिसको हे बचपन! ठगा दिया तूने।
अरे! जवानी के फंदे में मुझको फँसा दिया तूने॥

सब गलियाँ उसकी भी देखीं उसकी खुशियाँ न्यारी हैं।
प्यारी, प्रीतम की रँग-रलियों की स्मृतियाँ भी प्यारी हैं॥

माना मैंने युवा-काल का जीवन खूब निराला है।
आकांक्षा, पुरुषार्थ, ज्ञान का उदय मोहनेवाला है॥

किंतु यहाँ झंझट है भारी युद्ध-क्षेत्र संसार बना।
चिंता के चक्कर में पड़कर जीवन भी है भार बना॥

आ जा बचपन! एक बार फिर दे दे अपनी निर्मल शांति।
व्याकुल व्यथा मिटानेवाली वह अपनी प्राकृत विश्रांति॥

वह भोली-सी मधुर सरलता वह प्यारा जीवन निष्पाप।
क्या आकर फिर मिटा सकेगा तू मेरे मन का संताप?

मैं बचपन को बुला रही थी बोल उठी बिटिया मेरी।
नंदन वन-सी फूल उठी यह छोटी-सी कुटिया मेरी॥

'माँ ओ' कहकर बुला रही थी मिट्टी खाकर आयी थी।
कुछ मुँह में कुछ लिये हाथ में मुझे खिलाने लायी थी॥

पुलक रहे थे अंग, दृगों में कौतुहल था छलक रहा।
मुँह पर थी आह्लाद-लालिमा विजय-गर्व था झलक रहा॥

मैंने पूछा 'यह क्या लायी?' बोल उठी वह 'माँ, काओ'।
हुआ प्रफुल्लित हृदय खुशी से मैंने कहा - 'तुम्हीं खाओ'॥

पाया मैंने बचपन फिर से बचपन बेटी बन आया।
उसकी मंजुल मूर्ति देखकर मुझ में नवजीवन आया॥

मैं भी उसके साथ खेलती खाती हूँ, तुतलाती हूँ।
मिलकर उसके साथ स्वयं मैं भी बच्ची बन जाती हूँ॥

जिसे खोजती थी बरसों से अब जाकर उसको पाया।
भाग गया था मुझे छोड़कर वह बचपन फिर से आया॥

Tuesday 6 November 2018

जानिए:- कामयाबी के लिए संतुलन क्यों जरूरी है?

दोस्तों यदि हमें Life में कामयाब यानी successful होना है तो हमे जीवन में संतुलन जरूर बनाये रखना है मतलब बैलेंस बनाये रखना जरूर है! दुनियां में बहुत से लोग ऐसा कर भी पाते है और वह जीवन की हर लड़ाई को जीत लेते है , लेकिन कुछ लोग ऐसा नहीं कर पाते है और उन्हें हार का सामना करना पढ़ता है! 
यह भी पढ़िए:-  जीवन के पांच सिद्धांत जो बदल देंगे आपकी ज़िंदगी





आपको जीवन रुपी रस्सी पर चलने और life में balance बनाने के लिए जिस Tool की जरूरत होगी वह आपके पास आपके जन्म से ही है! उसका नाम है- दिमाग! Mind होता तो सभी के पास है- लेकिन बहुत कम लोग ही इसका सही से इस्तेमाल कर पाते है! 


दोस्तों आपने खेल जरूर देखा होगा जिसमे एक व्यक्ति रस्सी पर चलता है और चलते समय अपना संतुलन बनाये रखता है ताकि वह गिरे नहीं! 



संतुलन बनाने के लिए वह अपने हाथ में एक लम्बा डंडा ले लेता है! यह डंडा उसे रस्सी पर चलते समय balance बनाये रखने में मदद करता है!  



सोचों दोस्तों , अगर उस व्यक्ति के पास वह डण्डा नहीं हो तो , क्या वह रस्सी पर चलते समय अपना बेलेन्स बना पायेगा? नहीं! वह बेलेन्स नहीं बना पायेगा और वह गिर जाएगा! 


इसी प्रकार हम सभी को एक जीवन मिला है जो इस रस्सी के समान ही है , जिस पर हमें चलना है!  जो व्यक्ति इस पर बैलेंस बना कर चलता है वह अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है और इस पर बैलेंस नहीं बना पाता , वह गिर जाता और असफल हो जाता है! 



यदि दोस्तों हम इस खेल को देखे तो खेल खेलना वाला एक डण्डे की सहायता से बैलेंस बनाता है! यानी हमे भी अपने जीवन में बैलेंस बनाये रखने के लिए एक टूल की जरूरत होगी! वैसे जीवन में हम सब कुछ अच्छा चाहते है! हम चाहते है की सब कुछ बैलेंस रहे  बहुत से लोग ऐसा कर भी पाते है और वह जीवन की हर लड़ाई को जीत लेते है , लेकिन कुछ लोग ऐसा नहीं कर पाते है और उन्हें हार का सामना करना पढ़ता है! 



जीवन में सभी लोग सफलता प्राप्त करना चाहते है! सभी बहुत पैसा चाहते है! सभी लोग अच्छा रिलेसशनशिप चाहते है! साथ ही सभी लोग अच्छा और बेहतर स्वाथ्य के मालिक बनना चाहते है! 



सभी लोग इन सभी को पाने का पूरा प्रयास भी करते है , लेकिन इन सभी में बेलेन्स न बना पाने के कारण लोग कई चीजों को गवां देते है और खुद को असफल महसूस करते है! 



आपको इस जीवन रुपी रस्सी पर चलने और लाइफ में बैलेंस बनाने के लिए जिस टूल की जरूरत होगी वह आपके पास है आपके जन्म से ही है , उसका नाम है आपका दिमाग! अब आप कहेंगे की यह तो सबके पास होता है , तो हर कोई अपने जीवन में बैलेंस क्यों नहीं बना पाता? 




दोस्तों  यह माइंड होता तो सभी के पास है , लेकिन बहुत कम लोग ही इसका सही इस्तेमाल कर पाते है!  



दोस्तों आप इस लेख यदि पूरा पढ़ेंगे तो निश्चिन्त रूप से अपने माइंड का इस्तेमाल जीवन में बैलेंस बनाने के लिए सही से कर पाएंगे! 


आइये  जानते है की जीवन में संतुलन बनाये रखने के लिए आपको अपने माइंड की मदद से क्या क्या करना चाहिए! आगे दिए गए तरीको को ध्यान से पढ़िए और अपने जीवन में संतुलन बनाकर साधारण जीवन को एक सफल जीवन में बदल दीजिये! 

जीवन में बेलेन्स बनाने के उपाए 

1. 👉  सबसे पहले आप उन चीजों की एक लिस्ट बना लीजिये जिसमे आप बैलेंस बनाना चाहते है! 

2. 👉  लिस्ट बनाने के लिए आप कभी दो चीजों को एक साथ मत जोड़िये! शाम को अपने ऑफिस से आने के बाद आप अपने घर पर समय दीजिये! इसके लिए आप टाइम फिक्स कर सकते है!  

3. 👉  बैलेंस बनाने के लिए आप रोज कुछ समय फैमिली को अवश्य दे! आप वीकेंड में रात के खाने के लिए आप किसी रेस्टोरेंट में जा सकते है , या किसी पिकनिक पर जा सकते है! 

4. 👉   बहुत से लोग ऑफिस में अपनी घरेलू ज़िंदगी के बारे में और शाम को घर जाकर अपने ऑफिस के काम के बारे में सोचते  रहते है! ऐसा बिलकुल भी नही करना चाहिए! 

5. 👉  आपको कुछ भी करना हो तो आप सही से तभी कर पाएंगे जब आपके पास एक प्राथमिक क्रम हो! अपनी बॉडी को स्वस्थ्य बनाने के लिए आपको प्रत्येक दिन कुछ समय जरूर निकालना चाहिए! 

6. 👉   सेहत बनाने के लिए आपको रोज सुबह सुबह का समय निकालना चाहिए! आप सुबह उठ कर ध्यान , व्यायाम आदि कर सकते है! इसके लिए आपको रोज सुबह जल्दी उठना चाहिए और सेहत के लिए रोज 30 मिनिट जरूर निकालना चाहिए! 

7. 👉   आपका जीवन सही और संतुलन से चलता रहे , इसके लिए आपको आय में से कुछ पैसा जरूर लगाना चाहिए!  

8. 👉    आपका समय बर्बाद न हो इसके लिए आप रोज श्याम को एक डायरी में दिन भर में किये उन कार्यों के बारे में लिखिए जो बिलकुल भी जरूरी नहीं थे! 

9. 👉    आपको रोज अपने उन कार्यों के बारे में जरूर लिखना है जिनसे आपका टाइम ख़राब होता है! और उसकी जगह उन कामों को दीजिये जो जरूरी है! दोस्तों कुछ ही दिनों में आप पाएंगे की आप अपने हर जरूरी काम के लिए समय दे पा रहे है! 

10. 👉   अब सबसे जरूरी लाइफ के बारे में बात करते है , वह है- आपकी प्राथमिकता में आपको रोज कुछ समय अपने लिए भी देना चाहिए! आपके लिए क्या जरूर है , क्या सही है? आपका मन और आपका शरीर कितना संतुलन में है , सुबह सेहत के लिए कितना समय देना है , शाम को थकने पर क्या करना है ताकि रिलेक्स मिले! इन सभी चीजों के बारे में सोच कर आपको इनके लिए समय जरूर देना चाहिए! 

दोस्तों  यदि आपको यह लेख अच्छा लगा तो जरूर नीचे बताये गए सोशल मीडिआ आइकॉन पर क्लिक कर इस ब्लॉग को शेयर करे. और यदि आपके मन में कोई सवाल है तो आप बेझिक पूछ सकते है....धन्यवाद. 

हिंदीविचार जो बदल दे आपकी ज़िंदगी 

Sunday 21 October 2018

एक नई सोच जो हम सबके लिए जरूरी है ...🙏जय गुरुदेव🙏


आप बुध्दीजीवी है, एक बार जरूर सोच कर देखिये 


(प्राकृतिक आपदाओं पर हुई नई खोजों के नतीजें मानें तो इन दिनों बढ़ती मांसाहार की प्रवृत्ति भूकंप और बाढ़ के लिए जिम्मेदार है। आइंस्टीन पेन वेव्ज के मुताबिक मनुष्य की स्वाद की चाहत- खासतौर पर मांसाहार की आदत के कारण प्रतिदिन मारे जाने वाले पशुओं की संख्या दिनोंदिन बढ़ रही है।

सूजडल (रूस) में पिछले दिनों हुए भूस्खलन और प्राकृतिक आपदा पर हुए एक सम्मेलन में भारत से गए भौतिकी के तीन वैज्ञानिकों ने एक शोधपत्र पढ़ा। डा. मदन मोहन बजाज, डा. इब्राहीम और डा. विजयराजसिंह के तैयार किए शोधपत्र के आधार पर कहा गया कि भारत में पिछले दिनों आए तीन बड़े भूकंपों में आइंस्टीन पैन वेव्ज (इपीडबल्यू) या नोरीप्शन वेव्ज बड़ा कारण रही है।

इन तरंगों की व्याख्या यह की गई है कि कत्लखानों में जब पशु काटे जाते हैं तो उनकी अव्यक्त कराह, फरफराहट, तड़प वातावरण में भय और चिंता की लहरें उत्पन्न करती है। यों कहें कि प्रकृति अपनी संतानों की पीड़ा से विचलित होती है। अध्ययन मे बताया गया है कि प्रकृति जब ज्यादा क्षुब्ध होती है तो मनुष्य आपस में भी लड़ने भिड़ने लगते हैं और विभिन्न देश प्रदेशों में दंगे होने लगते हैं।


सिर्फ स्वाद के लिए बेकसूर जीव जंतुओं की हत्या भी इस तरह के दंगों का कारण बनती है पर कभी कदा। ज्यादातर मामलों में प्राकृतिक उत्पात जैसे अतिवृष्टि, अनावृष्टि, बाढ़, भूकंप, ज्वालामुखी के विस्फोट जैसे संकट आते हैं। इस अध्ययन के मुताबिक एक कत्लखाने से जिसमें औसतन पचास जानवरों को मारा जाता है 1040 मेगावाट ऊर्जा फेंकने वाली इपीडब्लू पैदा होती है।

दुनिया के करीब 50 लाख छोटे बड़े कत्लखानों में प्रतिदिन 50 लाख करोड़ मेगावाट की मारक क्षमता वाली शोक तरंगे या इपीडव्लू पैदा होती है। सम्मेलन में माना गया कि कुदरत कोई डंडा ले कर तो इन तंरगों के गुनाहगार लोगों को दंड देने नहीं निकलती। उसकी एक ठंडी सांस भी धरती पर रहने वालों को कंपकंपा देने के लिए काफी है।

कत्लखानों में जब जानवरों को कत्ल किया जाता है तो बहुत बेरहमी के साथ किया जाता है बहुत हिंसा होती है बहुत अत्याचार होता है। जानवरों का कतल होते समय उनकी जो चीत्कार निकलती है, उनके शरीर से जो स्ट्रेस हारमोन निकलते है और उनकी जो शोक वेभ निकलती है वो पूरी दुनिया को तरंगित कर देती है कम्पायमान कर देती है। परीक्षण के दौरान लैबरोट्री में भी जानवरों पर ऐसा हीं वीभत्स अत्याचार होता है।


जानवरों को जब कटा जाता है तोह बहुत दिनों तक उनको भूखा रखा जाता है और कमजोर किया जाता है फिर इनके ऊपर ७० डिग्री सेंट्रीगेड गर्म पानी की बौछार डाली जाती है उससे शरीर फूलना शुरु हो जाता है तब गाय भैंस तड़पना और चिल्लाने लगते हैं तब जीवित स्थिति में उनकी खाल को उतारा जाता है और खून को भी इकठ्ठा किया जाता है | फिर धीरे धीरे गर्दन काटी जाती है, एक एक अंग अलग से निकला जाता है।

आज का आधुनिक विज्ञानं ने ये सिद्ध किया है के मरते समय जानवर हो या इन्सान अगर उसको क्रूरता से मारा जाता है तो उसके शरीर से निकलने वाली जो चीख पुकार है उसकी बाइब्रेसन में जो नेगेटिव वेव्स निकलते हैं वो पूरे वातावरण को बुरी तरह से प्रभावित करता है और उससे सभी मनुष्यों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, इससे मनुष्य में हिंसा करने की प्रवृत्ति बढ़ती है जो अत्याचार और पाप पूरी दुनिया में बढ़ा रही है |


दिल्ली के दो प्रोफेसर है एक मदनमोहन जी और एक उनके सहयोगी जिन्होंने बीस साल इनपर रिसर्च किया है और उनकी रिसर्च ये कहती है कि जानवरों का जितना ज्यादा कत्ल किया जायेगा जितना ज्यादा हिंसा से मारा जायेगा उतना ही अधिक दुनिया में भूकंप आएंगे, जलजले आएंगे, प्राकृतिक आपदा आयेगी उतना ही दुनिया में संतुलन बिगड़ेगा

Tuesday 28 August 2018

जानिए- धूम्रपान कैसे ज़िदगी बर्बाद करता है? धूम्रपान की लत को कैसे छोड़े? सिगरेट कैसे छोड़े? स्मोकिंग एक अभिशाप





धूम्रपान क्या है? 



धूम्रपान एक ऐसी आदत है जिसमें किसी पदार्थ, सामान्यतः तम्बाकू या भांग को जलाकर, उसके धुएं को सांस द्वारा अंदर खींचा जाता है.





 इसका प्रयोग 


एक मनोरंजक दवा के रूप में किया जाता है, चूंकि दहन क्रिया निकोटिन जैसे सक्रिय पदार्थ छोड़ती है, और उन्हें फेफड़ों के माध्यम से अवशोषित करने के लिए उपलब्ध कराती है. 



इसे एक रिवाज के एक भाग के रूप में, समाधि में जाने के लिए प्रेरित करने और आध्यात्मिक ज्ञान को उत्पन्न करने में भी किया जा सकता है. 



वर्तमान में धूम्रपान की सबसे प्रचलित विधि सिगरेट है, जो मुख्य रूप से उद्योगों द्वारा निर्मित होती है किन्तु खुले तम्बाकू तथा कागज़ को हाथ से गोल करके भी बनाई जाती है. धूम्रपान के अन्य साधनों में पाइप, सिगार, हुक्का एवं बॉन्ग शामिल हैं. 





बीमारियां




ऐसा बताया जाता है कि धूम्रपान से संबंधित बीमारियां सभी दीर्घकालिक धूम्रपान करने वालों में से आधों की जान ले लेती हैं किन्तु ये बीमारियां धूम्रपान न करने वालों को भी लग सकती हैं. 2007 की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक वर्ष दुनिया भर में 4.9 मिलियन लोग धूम्रपान की वजह से मरते हैं.:skull:





मनोरंजक दवा 





धूम्रपान मनोरंजक दवा का एक सबसे सामान्य रूप है. तंबाकू धूम्रपान वर्तमान धूम्रपान का सबसे लोकप्रिय प्रकार है और अधिकतर सभी मानव समाजों में एक बिलियन लोगों द्वारा किया जाता है. धूम्रपान के लिए कम प्रचलित नशीली दवाओं में भांग तथा अफीम शामिल है. कुछ पदार्थों को हानिकारक मादक पदार्थों के रूप में वर्गीकृत किया गया है जैसे कि हेरोइन, किन्तु इनका प्रयोग अत्यंत सीमित है क्योंकि अक्सर ये व्यवसायिक रूप से उपलब्ध नहीं होते.


धूम्रपान का इतिहास





धूम्रपान का इतिहास लगभग 5000 ई.पू. पुराना हो सकता है और दुनिया भर की कई संस्कृतियों में इसका जिक्र किया गया है. शुरूआती धूम्रपान धार्मिक अनुष्ठानों जैसे देवताओं को प्रसाद, सफाई के रिवाजों के तौर पर, या फिर आध्यात्मिक ज्ञान के लिए ओझाओं या पुजारियों द्वारा अनुमान लगाने के लिए अपने मस्तिष्क के विचार बदलने के प्रयोजन से किया जाता था. यूरोपीय अन्वेषण और अमेरिका की विजय के बाद, तम्बाकू धूम्रपान की आदत दुनिया भर में तेज़ी से फैली. भारत तथा अफ्रीका के उप सहारा में, यह धूम्रपान के समकालीन तरीकों (अधिकतर भांग) के साथ मिल गई. यूरोप में, यह नए प्रकार की सामाजिक गतिविधि और नशीली दवाओं के सेवन के रूप में शुरू हुई, जो पहले अज्ञात थी.


तम्बाकू धूम्रपान कई रोगों का प्रमुख कारण 





धूम्रपान संबंधित धारणाएं; पवित्र और पापी, परिष्कृत और गलत, रामबाण दवा और स्वास्थ्य के लिए घातक खतरा, समय तथा स्थान के साथ बदलती रही हैं. केवल अपेक्षाकृत हाल ही में, और औद्योगिक पश्चिमी देशों में मुख्य रूप से, धूम्रपान को नकारात्मक रूप से देखा जाने लगा है. आज चिकित्सा अध्ययनों ने यह प्रमाणित कर दिया है है कि तम्बाकू धूम्रपान कई रोगों जैसे फेफड़े का कैंसर, दिल का दौरा, नपुंसकता और जन्मजात विकारों को बढ़ावा देने वाले प्रमुख कारणों में से एक है. धूम्रपान के स्वास्थ्य निहित खतरों के कारण, कई देशों ने तम्बाकू पदार्थों पर उच्च कर लगा दिए हैं और तम्बाकू धूम्रपान को रोकने के प्रयासों के रूप में धूम्रपान विरोधी अभियान प्रत्येक वर्ष शुरू किए जाते हैं.  


यह कैसे काम करता है?




शिराओं में मादक पदार्थ को पहुंचाने का सबसे तीव्र और कारगर ढंग किसी पदार्थ के वाष्पित गैस रूप को फेफड़ों द्वारा अन्दर लेना है (क्योंकि गैसे सीधे फुफ्फुसीय शिरा में मिलती हैं, इसके बाद दिल में तथा यहां से दिमाग तक) और यह पहली सांस के एक सैकेंड से भी कम समय में उपयोगकर्ता को प्रभावित करती है. 



फेफड़े कई लाख छोटे बल्बों से मिलकर बने होते हैं, जिन्हें अल्वेओली (alveoli) कहा जाता है जो कि एक साथ मिलकर 70 मी² तक का क्षेत्र बनाते हैं (जोकि लगभग एक टेनिस कोर्ट के क्षेत्र के बराबर है). इसका प्रयोग उपयोगी औषधियां लेने के लिए किया जा सकता है जैसे एयरोसोल, जो कि दवाओं की छोटी बूंदों से मिल कर बने होते हैं, या फिर पत्तियां जला कर उसके द्वारा उत्पन्न गैस द्वारा, जिसमे मस्तिष्क को उत्तेजित करने वाले पदार्थ हैं, या फिर पदार्थ के शुद्ध रूप को ग्रहण करके. 



सभी दवाओं का धूम्रपान नहीं किया जा सकता, उदाहरण के लिए सल्फेट व्युत्पन्न (डेरिवेटिव) जो मुख्यतः सांस द्वारा नाक के अन्दर ली जाती है, हालांकि पदार्थ के अति शुद्ध रूप का धूम्रपान किया जा सकता है लेकिन इसके लिए ठीक से दवा लेने के लिए अत्याधिक कौशल की आवश्यकता होती है. यह विधि भी कुछ हद तक अकुशल है चूंकि सारा धुंआ सांस द्वारा अन्दर नहीं जाएगा. 



सांस द्वारा अन्दर लिया गया पदार्थ तंत्रिकाओं के सिरों में रासायनिक प्रतिक्रियाएं करता है, क्योंकि यह एंडोरफिन्स और डोपामाइन जैसे प्राकृतिक उत्पादों जैसा होता है, जो ख़ुशी के एहसास से संबंधित हैं. परिणामस्वरूप प्राप्त होने वाले अनुभव को "हाई" (High) कहते हैं जो कि निकोटिन के कारण हुई हलकी उत्तेजना से लेकर हेरोइन, कोकीन और मेथाम्फेटामाइन के मामले में अत्याधिक उत्तेजना के बीच की स्थिति हो सकती है. 



चाहे पदार्थ जो भी हो, फेफड़ों में धुआं लेने से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. ज्वलनशील पत्तियों की सामग्री जैसे तम्बाकू या भांग के अधूरे दहन से कार्बन मोनोऑक्साइड उत्पन्न होती है, जो फेफड़ों में रक्त द्वारा ले जाई जाने वाली ऑक्सीजन की मात्रा पर प्रभाव डालती है. इसके अलावा तम्बाकू में और भी कई विषाक्त यौगिक हैं जिनसे दीर्घ अवधि तक धूम्रपान करने वालों को गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं जिनमे से कई संवहनी आसामान्यताएं जैसे स्टेनोसिस, फेफड़ों का कैंसर, दिल का दौरा, स्ट्रोक, नपुंसकता, धूम्रपान करने वाली माताओं द्वारा जन्मे गये शिशु का कम वज़न आदि शामिल हैं. दीर्घकालीन धूम्रपान करने वालों के चेहरे में एक विशेष परिवर्तन आता है जिसे डॉक्टरों द्वारा स्मोकर्स फेस (smoker's face) कहा जाता है. ज्यादातर धूम्रपान करने वाले वयस्कता या किशोरावस्था की शुरुआत में धूम्रपान आरम्भ करते हैं. धूम्रपान में जोखिम लेने और विद्रोह के तत्व है, जो अक्सर युवा लोगों को आकर्षित करते हैं. उच्च वर्ग के मॉडल और साथियों की उपस्थिति भी धूम्रपान को प्रोत्साहित कर सकती है. चूंकि किशोर वयस्कों की बजाए अपने साथियों से अधिक प्रभावित होते हैं, इसलिए माता पिता, स्कूल और स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा उन्हें सिगरेट से बचाने की कोशिशें अक्सर असफल सिद्ध होती हैं.



हैंस आइसेंक जैसे मनोवैज्ञानिकों ने विशिष्ट धूम्रपान करने वालों के लिए एक व्यक्तित्व रेखा चित्र का विकास किया है. बहिर्मुखता एक ऐसी विशेषता है जो ज्यादातर धूम्रपान से जुड़ी है और धूम्रपान करने वाले मिलनसार, आवेगी, जोखिम उठाने वाले और उत्तेजना की चाहते रखने वाले व्यक्ति होते हैं. हालांकि व्यक्तित्व और सामाजिक कारक लोगों को धूम्रपान के लिए प्रेरित कर सकते हैं, लेकिन वास्तविक आदत प्रभाव डालने की अनुकूलता की क्रिया है. प्रारंभिक चरण के दौरान धूम्रपान सुखद अनुभूतियां प्रदान करता है (इसके डोपामाइन (dopamine) प्रणाली पर प्रभाव के कारण) और इस तरह सकारात्मक सुदृढ़ीकरण के एक स्रोत के रूप में कार्य करता है. एक व्यक्ति द्वारा कई वर्षों तक धूम्रपान करने के पश्चात छोड़ने के लक्षण और नकारात्मक सुदृढ़ीकरण प्रमुख उत्प्रेरक हो जाते हैं. हालांकि लम्बे समय से तम्बाकू के धूम्रपान को एक सार्वभौमिक नशे की लत के रूप में देखा गया है, आंकड़ों द्वारा यह सिद्ध किया जा चुका है कि निकोटिन का आदी बनने में लोगों को अलग अलग समय लगता है. वास्तव में, "नशेड़ी व्यवहार दर्शाने वाली जनसंख्या" के ग्राफ की प्रतिशतता 100% तक पहुँचने से पहले, "निकोटिन की मात्रा" के ग्राफ के बराबर है जिससे पता चलता है कि एक अनुपात में सभी लोग कभी भी निकोटिन पर निर्भर नहीं होते.



हालांकि, धूम्रपान करने वाले लोग ऐसी प्रक्रिया में लिप्त होते हैं जिसका स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, वे अपने व्यवहार को युक्ति संगत बताते हैं. दूसरे शब्दों में, वे समझाने के लिए, तर्क कला विकसित करते हैं कि उनके लिए धूम्रपान आवश्यक क्यों है, हालांकि जरूरी नहीं कि कारण तार्किक हों. उदाहरण के लिए, एक धूम्रपान करने वाला यह कह कर अपने व्यवहार को सही बता सकता है कि हर कोई मरता है और इसलिए, सिगरेट वास्तव में कुछ भी नहीं बदलती है. या एक व्यक्ति यह विश्वास कर सकता है कि धूम्रपान तनाव से छुटकारा दिलाता है या इसके कई अन्य लाभ हैं जो इसके जोखिम को सही ठहराते हैं. धूम्रपान करने वाले, जिनकी प्रत्येक सुबह सिगरेट से शुरुआत होती है, अक्सर सकारात्मक प्रभावों को व्यक्त करेंगे, किन्तु वे स्वीकार नहीं करेंगे कि उन्हें ख़ुशी की कमी महसूस हो रही है (डोपामाइन के कम स्तर के कारण) और ख़ुशी के "सामान्य" स्तर को पाने के लिए वे धूम्रपान करेंगे. (डोपामाइन का "सामान्य" स्तर).



तंबाकू संबंधित बीमारियों आज दुनिया में सबसे बड़ी हत्यारों के रूप में से एक हैं और औद्योगिक देशों में इन्हें अकाल मृत्यु का सबसे बड़ा कारण कहा जाता है. संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रति वर्ष लगभग 500000 मौतें तम्बाकू संबंधित बीमारियों के कारण होती हैं और एक ताज़ा अध्ययन का अनुमान है कि चीन के पुरुषों के 1/3 भाग ने धूम्रपान के कारण अपना जीवनकाल घटा लिया है.



पुरुष और महिला धूम्रपान करने वाले अपने जीवन के क्रमशः 13.2 वर्ष और 14.5 वर्ष औसतन कम कर लेते हैं.



आजीवन धूम्रपान करने वाले लगभग आधे लोग धूम्रपान के कारण समय से पहले मर जाते हैं.



फेफड़ों के कैंसर से मरने का खतरा 85 वर्ष की उम्र में धूम्रपान करने वाले एक पुरुष के लिए 22.1% और धूम्रपान करने वाली एक वर्तमान महिला के लिए 11.9% है, मृत्यु के प्रतिस्पर्धी कारणों की अनुपस्थिति में इसी से यह भी अनुमान लगाया गया कि 85 वर्ष की उम्र से पहले आजीवन धूम्रपान न करने वालों की फेफड़ों के कैंसर से मरने की सम्भावना यूरोपीय क्षेत्र के पुरुष के लिए 1.1%, और महिला के लिए 0.8% है.



प्रतिदिन एक सिगरेट पीने से धूम्रपान करने वाले व्यक्ति के लिए, धूम्रपान ना करने वाले व्यक्ति की अपेक्षा दिल के दौरे की संभावना पचास प्रतिशत है. अरैखिक खुराक प्रतिक्रिया को प्लेटलेट एकत्रीकरण प्रक्रिया पर धूम्रपान के प्रभाव से समझाया जाता है.



धूम्रपान के कारण होने वाली बीमारियों और वेदनाओं के कारण संवहनी स्टेनोसिस, फेफड़ों के कैंसर, दिल का दौरा और क्रोनिक प्रतिरोधी फुफ्फुसीय रोग हो सकते हैं



कई सरकारें मास मीडिया में धूम्रपान विरोधी अभियानों के साथ धूम्रपान के दीर्घकालीन खतरों के बारे में जोर देते हुए लोगों को लोगों को रोकने की कोशिश कर रही है. पैसिव धूम्रपान, या निष्क्रिय धूम्रपान, जो धूम्रपान करने वालों के आसपास के क्षेत्र में लोगों को तत्काल प्रभावित करता है, धूम्रपान पर प्रतिबंध लागू करने का एक प्रमुख कारण है. यह एक ऐसा कानून है जो कि किसी व्यक्ति को इनडोर सार्वजनिक स्थलों जैसे बार, पब और रेस्तरां में धूम्रपान करने से रोकने के लिए बनाया गया है. ऐसा करने के पीछे विचार यह है कि धूम्रपान को अत्याधिक असुविधाजनक बना कर इसे हतोत्साहित किया जाए तथा सार्वजनिक स्थानों पर खतरनाक धुएं पर रोक लगाई जाए. कानूनविदों के बीच चिंता का एक मुख्य कारण किशोरों को धूम्रपान के लिए हतोत्साहित करना है और कई राज्यों ने कम उम्र के लोगों को तम्बाकू पदार्थ बेचने के खिलाफ कानून पारित किये हैं. कई विकासशील देशों ने अभी धूम्रपान विरोधी नीतियां नहीं अपनाई हैं जिसके कारण कुछ देश धूम्रपान विरोधी अभियान और ETS (पर्यावरण तम्बाकू धूम्रपान) के बारे में शिक्षा दे रहे हैं.



कई प्रतिबंधों के बावजूद, यूरोपीय देश शीर्ष 20 स्थानों में से 18 स्थानों पर कब्ज़ा जमाए हुए हैं और एक मार्केट रिसर्च कम्पनी ERC के अनुसार, 2007 में प्रति व्यक्ति औसतन 3000 सिगरेटों के साथ सबसे ज्यादा धूम्रपान करने वाले ग्रीस में हैं. विकसित दुनिया में धूम्रपान की दर स्थिर हुई है या इसमें गिरावट आई है, लेकिन विकासशील देशों में वृद्धि जारी है. 1965 से 2006 तक संयुक्त राज्य अमेरिका में धूम्रपान की दर 42% से 20.8% तक गिरी है.



दुनियाभर में कानूनों तथा मादक पदार्थों के कानूनों में मतभेद के कारण, समाज पर लत के प्रभाव, अलग-अलग पदार्थों तथा इनसे उत्पन्न होने वाली अप्रत्यक्ष सामजिक समस्याओं के कारण भिन्न हो सकते हैं. हालांकि निकोटिन अत्याधिक नशीली दवाई है लेकिन मस्तिष्क पर इसका प्रभाव इतना तीव्र या ध्यान देने योग्य नहीं है जितना कि दूसरी दवाओं जैसे कोकीन, एम्फेटामाइन्स या अन्य कोई मादक पदार्थ का (जिसमे हेरोइन व मॉर्फीन भी शामिल है). चूंकि तम्बाकू गैर कानूनी दवा भी नहीं है, इसमें उपभोक्ता के लिए उच्च जोखिम और अधिक दामों वाला कोई काला बाज़ार नहीं है.



धूम्रपान अल्जाइमर रोग के खतरे का एक महत्त्वपूर्ण कारक है.



तम्बाकू मुक्त बच्चों के लिए अभियान का दावा है कि धूम्रपान करने वालों की वजह से अमेरिकी उत्पादकता को प्रतिवर्ष 97.6 बिलियन डॉलर का नुक्सान होता है और लगभग 96.7 बिलियन डॉलर सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य पर अतिरिक्त खर्च किया जाता है. यह सकल घरेलू उत्पाद के 1% से भी अधिक है. संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रतिदिन एक पैकेट से अधिक धूम्रपान करने वाला पुरुष अपने जीवन काल में औसतन 19000 डॉलर केवल अपनी चिकित्सा पर खर्च करता है. अमेरिका में प्रतिदिन एक पैकेट से अधिक धूम्रपान करने वाले महिला भी अपने जीवन काल में औसतन 25800 डॉलर केवल अपनी अतिरिक्त स्वास्थ्य देखभाल पर खर्च करती है. ये लागत अतिरिक्त राजस्व कर से अलग देखी जानी चाहिए जो धूम्रपान के कारण प्राप्त होता है.


Monday 25 June 2018

'बापू' का सपना 'स्वच्छ भारत' एक विशेष लेख.





नमस्कार दोस्तों आज की पोस्ट में हम स्वच्छ भारत अभियान के बारे में पूरी जानकारी लेकर आये है! इसकी शुरुआत कब से हुई? इसका प्रमुख्य उद्देस्य क्या है? इससे हम केसे जुड़ सकते है? यह हमारे लिए क्यों जरूरी है? ..आदि सवालों के बारे में जानेंगे तो दोस्तों आप भी इस अभियान के बारे में जानना चाहते है तो दोस्तों हमारे साथ बने रहे ..धन्यवाद् ...क्यूंकि इतना कीमती समय दे रहे हो ....अब समय बर्बाद नहीं करते हुए इसकी पूरी जानकारी आपको बता ही देता हूँ! 


स्वच्छ भारत अभियान क्या है? 

स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत भारत सरकार ने राष्ट्रीय स्तर अभियान के रूप में की है , इसका प्रमुख उद्देश्य सड़क , कस्बे , गांव और छोटे बड़े शहर को स्वच्छ और साफ सुथरा रखना है!  





स्वच्छ भारत अभियान राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के जन्मदिवस 02 अक्टूम्बर को 2014 को आरम्भ किया गया! राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी ने देश को आजादी दिलाई लेकिन उनका सपना पूरा नहीं हुआ था जिसका नाम है 'स्वच्छ भारत'! 


राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने अपने आसपास के लोगों को स्वच्छता बनाये रखने सम्बन्धी सन्देश दिया था एवं इस सन्देश को मतलब स्वच्छ भारत अभियान को जागरूक करने की सलाह दी थी तथा स्वच्छता सम्बन्धी शिक्षा प्रदान कर राष्ट्र को एक उत्कर्ष सन्देश दिया था! 

स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत और इससे वेबसाइट पर जाकर आप जुड़ सकते है! 

तिथि- 02 अक्टूम्बर 2014 

स्थान- नई दिल्ली , भारत 

वेबसाइट- http://swachhbharat.mygov.in/





इसका प्रमुख्य उद्देस्य क्या है? 

दोस्तों स्वच्छ भारत अभियान का उद्देश्य व्यक्ति , क्लस्टर और सामुदायिक एवं सार्वजानिक शौचालयों का निर्माण करने के माध्यम से खुले में सोच की समस्या कम करना है या फिर जड़ से ख़त्म करना है! स्वच्छ भारत मिशन लेट्रिन या टॉयलेट को बनवाने के बाद इसके उपयोग करने की निगरानी की जाएगी! 


भारत सरकार ने 2 अक्टूम्बर 2019 तक यानी महात्मा गाँधी के जन्मदिवस की 150 वी वर्षगांठ तक भारतीय ग्रामीण में 1.96  लाख करोड़ रूपये की अनुमानित लागत के 1.2 करोड़ शौचालयों का निर्मांण करके खुले में सोच की कुप्रथा या खुले में सोच करने की आदत से भारत को मुक्त कराना है! इसका लक्ष्य ओडीएफ को हांसिल करना रखा गया है! 

सही मायने में इसकी शुरुआत कब हुई?

दोस्तों यदि बात करे स्वच्छ भारत अभियान की तो यह आधिकारिक रूप से शुरू किया गया! भारत सरकार ने स्वछता का पुनर्गठन किया और स्वछता अभियान की शुरुआत किया जिसका बाद में 1 अप्रेल 2012 को तत्कालीन प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह द्वारा निर्मल भारत अभियान एनबीए नाम दिया! 

निर्मल भारत अभियान एक प्रकार से कार्यक्रम था जो की वर्ष 1999 से वर्ष 2012 तक पूर्ण रूप से स्वच्छता से सिद्धांतों को आधार बना कर पूर्ण रूप से चलाया गया! 




फिर हुई ग्रामीण क्षेत्रों में सुरुआत!

सरकार ने 2 अक्टुम्बर 2019 तक भारत के सभी गांव में सौचालय बनवाने की शुरुआत की गई! प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी में अपने 2014 के भाषण में स्वतंत्रता के उपलक्ष्य शौचालय के विषय इसकी  जरूरत के बारे में बताया! 

क्या हमें कभी दर्द हुआ है कि हमारी मां और बहनों को खुले में शौच करना पड़ता है? गांव की गरीब महिलाएं रात की प्रतीक्षा करती हैं; जब तक अंधेरा नहीं उतरता है, तब तक वे शौंच को बाहर नहीं जा सकतीं हैं। उन्हें किस प्रकार की शारीरिक यातना होती होंगी, क्या हम अपनी मां और बहनों की गरिमा के लिए शौचालयों की व्यवस्था नहीं कर सकते हैं?

प्रधान मंत्री मोदी ने 2014 के जम्मू और कश्मीर राज्य चुनाव अभियान के दौरान स्कूलों में शौचालयों की आवश्यकता के बारे में भी बताया:- 

जब छात्रा उस उम्र तक पहुंचती है जहां उसे पता चल जाता है कि स्कूल में महिला शौचालयों की कमी के कारण उसने अपनी शिक्षा को बीच में छोड़ दी है और इस कारण जब वे अपनी शिक्षा को बीच में छोड़ देते हैं तो वे अशिक्षित रहते हैं। हमारी बेटियों को गुणवत्ता की शिक्षा का समान मौका भी मिलना चाहिए। 60 वर्षों की स्वतंत्रता के बाद प्रत्येक स्कूल में छात्राओं के लिए अलग शौचालय होना चाहिए था। लेकिन पिछले 60 सालों से वे लड़कियों के लिए अलग-अलग शौचालय नहीं दे सके और नतीजतन, महिला छात्रों को अपनी शिक्षा को बीच में छोड़ना पड़ता था! -नरेंद्र मोदी




प्रचार के लिए इन लोगों को चुना गया! 

सचिन तेंडुलकर
प्रियंका चोपड़ा
अनिल अंबानी
बाबा रामदेव
सलमान खान
शशि थरूर
तारक मेहता का उल्टा चश्मा की टीम
मृदुला सिन्हा
कमल हसन
विराट कोहली
महेन्द्र सिंह धोनी
ईआर. दिलकेश्वर कुमार 

साफ शहरों की सूची में बनाई गयी! 

दोस्तों  भारत सरकार ने 15 फरवरी 2016 को सफाई की सूची बनाई गयी!  सफाई सिलेक्शन 2016 में 73 शहरों की लिस्ट बनाई गयी! 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों का सर्वे किया गया की वह कितने साफ है या कितने गंदे शहर है! 

टॉप 10 शहर की लिस्ट में इन शहरों के नाम! 

1.इंदौर (मध्य प्रदेश)
2.चंडीगढ़
3. तिरुचिरापल्ली (तमिलनाडु)
4.नई दिल्ली
5.विशाखापत्तनम (आंध्र प्रदेश)
6.सूरत (गुजरात)
7.राजकोट (गुजरात)
8.गंगटोक (सिक्किम)
9.पिंपरी चिंचवड (महाराष्ट्र)
10.ग्रेटर मुंबई (महाराष्ट्र)





 
इस दौरान की जाने वाली गतिविधियों में शामिल हैं-

स्कूल कक्षाओं के दौरान प्रतिदिन बच्चों के साथ सफाई और स्वच्छता के विभिन्न पहलुओं पर SBAविशेष रूप से महात्मा गांधी की स्वच्छता और अच्छे स्वास्थ्य से जुड़ीं शिक्षाओं के संबंध में बात करें।



कक्षा, प्रयोगशाला और पुस्तकालयों आदि की सफाई करना।
स्कूल में स्थापित किसी भी मूर्ति या स्कूल की स्थापना करने वाले व्यक्ति के योगदान के बारे में बात करना और इस मूर्तियों की सफाई करना।
शौचालयों और पीने के पानी वाले क्षेत्रों की सफाई करना।
रसोई और सामान ग्रह की सफाई करना।
खेल के मैदान की सफाई करना
स्कूल बगीचों का रखरखाव और सफाई करना।
स्कूल भवनों का वार्षिक रखरखाव रंगाई एवं पुताई के साथ।
निबंध,वाद-विवाद, चित्रकला, सफाई और स्वच्छता पर प्रतियोगिताओं का आयोजन।
'बाल मंत्रिमंडलों का निगरानी दल बनाना और सफाई अभियान की निगरानी करना। 





दोस्तों यदि यह जानकरी आपको अच्छी लगी या फिर किसी लगी अथवा आपके मन में कोई भी सवाल हो तो आप बेजिझक नीचे कमेंट करके पूछ सकते है में आपको इसका तुरंत जवाब दूंगा और यदि आपको यह जानकारी अच्छी तो आप ने किसी भी आइकॉन पर क्लिक कर के वाट्सअप फेसबुक और भी साइट पर शेयर कर सकते हो! 







Friday 18 May 2018

जानिए "दोस्ती की असली पहचान'' क्या है




दोस्ती एक ऐसा 'शब्द' जो 'शब्द' नहीं है , अपितु यह एक एहसास है , फीलिंग है! हमारे हाव-भाव से ओतप्रोत दोस्ती का दूसरा नाम ही ज़िंदगी है!


हमें पता है दोस्ती की शुरुआत हमारे जीवन में जन्म के बाद तब होती है जब हम कुछ जानने और पहचानने लग जाते या सोचने और समझने लग जाते है!


लेकिन क्या आपको पता है? सही मायने में हमारी दोस्ती की पहली शुरुआत प्रत्यक्ष रूप से कब होती है?





नहीं पता है न? तो दोस्तों आज के इस छोटे से लेख में  आपको 'दोस्ती की पहचान' से अवगत कराऊंगा जो हमारी सबसे पहली दोस्ती होती है!


हमारी दोस्ती की शुरुआत सबसे पहले माँ से होती है , पिता से होती है भाई-बहन , दादा-दादी और भी हमारे परिवार के कई लोगों से हमारी दोस्ती की शुरुआत होती है और जो हमें दोस्ती के साथ प्यार भी करते है और नि:स्वार्थ भाव से निभाते भी है!


यह बात तो सही है , हमारा बचपन केसा रहा होगा हमें पता नहीं होता है लेकिन हमारे दोस्तों (परिवार के सदस्य) को सब कुछ पता होता है वो कभी भूलते नहीं है क्यूंकि यही दोस्त हमारी परवरिश करते है हमें प्यार से रखते है! हमारा पालन पोषण करते है!






यदि आपका मन नहीं माने तोह एक बार अपने परिवार में या माता-पिता से जरूर पूछे और कहे की हमारा बचपन केसा होता होगा तो वह आपको आपकि दोस्ती की  बारखड़ी 'आ' से लेकर 'ज्ञा' तक बता देंगे तब आपको कुछ समझ में आएगा!


जबकि हमारी  सबसे पहली  दोस्ती तो हमारे अपने , सगे सम्बन्धी और परिवार के लोगो  से ही होती है! फिर क्यों लोग इन्हे भूलने लगते है और नए दोस्त बनाते है , जबकि यही हमारे सबसे पहले दोस्त और बेस्ट फ्रेंड होते है!


आप आज के समय की  दोस्ती को इतना मानते हो न उससे  कही लाख गुना तो हमारे परिवार वाले दोस्ती मानते है जिसका आपको पता ही नहीं होता है!






दोस्तों  इस लेख से यही सन्देश देना चाहता हूँ युवा पीड़ी को या मेरी हमउम्र के दोस्तों को ,  की दोस्ती करे लेकिन उतनी ही  करे जितनी आटे में नमक समाये मेरा कहने का मतलब यह है की आप दोस्ती करे लेकिन अपनी दोस्ती को इतना गहरा न बनाये , जिससे आपको अपने पहले  दोस्त  मतलब अपने परिवार को भूलना न पडे!


क्योंकि आज के समय वाली दोस्ती में कुछ नहीं रखा है , न ही प्यार , न ही विश्वास बस रखा है तो वो है  सिर्फ मतलब.............. अब यहाँ इसका मतलब क्या है आपके लिए इसका अर्थ है स्वार्थ जिसे लोग सेल्फिश या स्वार्थी भी कहते है!

दोस्तों दोस्ती तो में भी करता हूँ , और बहुत सारे दोस्त भी , और जीवन में दोस्त बनाना बहुत जरूरी है क्यूंकि दोस्त के वगैर ज़िंदगी अधूरी है


लेकिन क्या हम दोस्ती करते वक्त यह नहीं जान सकते है की जिससे हम दोस्ती कर रहे है वो सही है गलत , यह तो जान ही सकते है न , तो दोस्तों आप दोस्ती करो दिल से लेकिन जो आप दोस्त बना रहे हो उसको जानो पहचानो और समझो क्यूंकि आज का दौर नहीं है दोस्ती करने का बस स्वार्थी दोस्ती है इसलिए अपने आप की संभालों और पहचानो की आखिर दोस्ती का सही मतलब क्या है!


एक दोस्ती वो जो हमारे जीवन से ही हमारी दोस्ती निभा रहे है मतलब हमारे परिवार के सदस्य!



दूसरी दोस्ती यह जब हम कुछ सोचने और समझने लग जाते है तब बनने वाली दोस्ती या इसके बाद वाली दोस्ती!
अब फैसला आपके हाथ में है आपको परिवार वाली दोस्ती चाहिए या आपने स्वयं बनाई वो वाली!


में तो अपने परिवार के साथ वाली दोस्ती निभाना चाहूंगा  क्यूंकि यही हमारी पहली दोस्ती है और जो पहली दोस्ती होती है वही हमारी जीवन की दोस्ती होती है!



दोस्त यह विचार मुझे तब आया जब मेने अपनी मम्मी से सवाल किया  की मेरा बचपन केसा था तो उन्होने उसका बहुत ही मार्मिक चित्रण किया और बताया! तब मुझे पता चला की दोस्ती की असली पहचान तोह हमारे अपने होते है!



दोस्तों अब यह लेख यही ख़त्म होता है 'दोस्ती की पहचान' आपको मेरा यह लेख केसा लगा जरूर बताये ताकि मेरा मनोबल बढे और में अच्छा प्रयास करूं लिखने का .....धन्यवाद...सोनू मेवाडे


Saturday 28 April 2018

जानिये- अपना मन वास्तव में है क्या? what is mind?






मन क्या है ? what is mind? 




दोस्तों मन को इतने आसान शब्दों में परिभाषित नहीं कर सकते है ,  चलिए चलते है  मन की गहराई में , तभी पता लगेगा .
की आखिर जो हमारा मन है , यह वास्तव में है क्या? दोस्तों आज हम इसी विषय की जानकारी से आपको अवगत कराएंगे! दोस्तों आप  जरूर पढ़े और सबके साथ शेयर करे!  





मन ये बङा साधारण सा लगने वाला प्रश्न लगता अवश्य है पर है नहीं . आप विचार करे कि मन शब्द का प्रयोग पूरे विश्व में होता है .लेकिन ये कोई नहीं जानता कि मन आखिर है कहाँ किसको मन कहा जाता है .हमारे शरीर में उसकी क्या और कहाँ स्थिति है . तो लोग अक्सर सिर की तरफ़ इशारा करते हैं और कोई कोई दिमाग या दिल को मन बताते हैं यह दोंनों ही बात गलत हैं और ये एक आश्चर्यजनक सत्य है.






वर्तमान मेडीकल सांइस में जितनी खोज हो चुकी है उसके आधार पर कोई भी अभी भी नहीं बता सकता कि मन आखिर है क्या और हैं कहाँ .हांलाकि इस तरह की बात कहना उचित नहीं है फ़िर भी आगामी सौ साल बाद , हजार साल बाद भी ये प्रश्न का उत्तर ज्यों का त्यों ही रहेगा .




आज मान लीजिये कि नासा के प्रोजेक्ट देख कर संसार हैरत में है और नासा का सबसे बङा मिशन है . ऐसे किसी दूसरे ग्रह की तलाश जिस पर किसी भी प्रकार का जीवन हो या फ़िर हमारी तरह की मनुष्य सभ्यता वहाँ निवास करती हो . इस पर अरबों डालर का खर्च आता है .अब जरा आप बहुत लोकप्रिय पुस्तक तुलसी की रामायण का उत्तरकाण्ड खोलकर देंखे तो नासा की तमाम खोज तमाम प्रयास आपको बचकाने लगेगें . इसमें तुलसी ने काकभुसुन्डी के माध्यम से अनेको स्रष्टियों का वर्णन किया है . 








वास्तव में मन है पर वहाँ कहीं नहीं जहाँ हम समझते हैं . बुधि भी मन का ही दूसरा रूप है. बुधि मन का ही परिशोधित रूप है. मन जब कोई फैसला करता है तो उसे बुधि कहते हैं. चित भी मन का ही तीसरा रूप है. मन जब कल्पना करता है तो उसे चित कहते हैं. मन जब कोई कियृा करता है तो उसे अंहकार कहते हैं. तो इस जगत में या कहीं भी सारा खेल ही मन का है. लेकिन वास्तव में वो कया है जिसे मन कहते हैं! 




 बहुत से लोग इस गलतफ़हमी के शिकार हैं कि इस सृष्टि को ब्रह्मा ने बनाया है । आईये इसको भी जानते हैं । सात दीप । नव खन्ड के । इस राज्य का मालिक । निरंजन यानी ररंकार यानी राम यानी कृष्ण यानी काल पुरुष यानी मन है । यह सृष्टि निर्माण के बाद अपने आरीजनल रूप को गुप्त करके हमेशा के लिये अदृष्य हो गया । वास्तव में इसकी पत्नी और इसके तीन बच्चे ब्रह्मा विष्णु शंकर भी इसको अपनी इच्छा से नहीं देख सकते हैं । यह अपनी इच्छा से ही किसी को मिलता है । आपको याद होगा । राम अवतार के समय शंकर ने कहा था । हरि व्यापक सर्वत्र समाना । प्रेम से प्रकट होत मैं जाना ।

तब भी इसकी सिर्फ़ आवाज ही आकाशवाणी के द्वारा सुनाई दी थी । वास्तव में यही राम कृष्ण के रूप में अवतार लेता है । और वेद आदि धर्म ग्रन्थ इसी की प्रेरणा से रचे गये हैं । वेदों को तो इसने स्वंय रचा है । सारे धर्म ग्रन्थों में यही संदेश देता है । इसकी पत्नी अष्टांगी कन्या यानी आध्या शक्ति यानी सीता यानी राधा यानी ब्रह्मा विष्णु शंकर की माँ यानी प्रकृति यानी सृष्टि की पहली औरत है ।



वेदांत के नजरीये से कहा जाय तो मन नाम की कोई वस्तु ही नही है, वह मात्र एक आभास है। जब शरीर-बुद्धि-अहंकार सयुक्त होते है तब एक उर्जा का निर्माण होता है वह उर्चाका नाम चित्तशक्ति कहलाता है। यह शक्ति का पर्यायवाचि शब्द ही मन के नाम से संसार में जाना जाता है। हालाकि मन और आत्मा दो अलग अलग नही है, जबकी वह अलग अलग दिखते जरुर है। जब आत्मा निष्किर्य, निर्लिप्त अवस्था में रहता है तब उसे आत्मा कहते है और जब वह सक्रिय रहता है तब उसे मन कहा जाता है। जब आत्मा शरीर-बुद्धि-अहंकार को स्विकार करता है उससे आश्कत रहता है तब वह मन कहलाता है अन्यथा वह सिर्फ निराकार, निगुण आत्मा ही होता है। 




शरीर, बुद्धि, संसार यह सब चित्तशक्ति का हि परिणाम है जो आत्मा की नीजकी शक्ति कहलाती है। आश्कति के कारण ही आत्मा अपनी शक्ति का उपयोग करके यह सब सृष्टि रचता है और एक समय ऐसा आता है जब वह आशक्ति रहीत हो कर सर्वव्यापक परमात्मा में लिन हो जाता है। 








परमात्मा और आत्मा एक ही है पर विभिन्न आश्क्तिओं के कारण मन-चित्त बहुतरे दिखते है और वह अपना अपना संसार निर्माण कर मनोनाश होने तक उसमें आत्मा को खिचकर बाधित करते रहते है। यह सिर्फ मेरी समज है हालाकि ज्ञानिलोग उसमें कुच प्रकाश डाल सकते है जो सब के लिए लाभदाई हो सकता है।

Wednesday 11 April 2018

जाने-दुनिया के पक्षी और जानवर जो अब विलुप्त होने की कगार पर है!





कई जानवर और पौधे प्रजातियां विलुप्त हो गई हैं और कई और अधिक गंभीर खतरे में हैं। क्या हम पृथ्वी के वन्यजीवों की रक्षा करने और प्राकृतिक दुनिया की रक्षा करने के तरीकों का पता लगा सकते हैं? लेकिन कोई उन उपाय को अपनाएंगे नहीं तो दोस्तों आज की पोस्ट जीव जंतुओ पर ही आधारित है जो अभी इस दुनियां में नहीं है , और कुछ शेष रहे है तो वह भी ख़त्म होने की कगार पर है! 

   अवश्य पढ़े-  पशु-पक्षी हमारे दोस्त है! हमें इनकी मदद करनी चाहिए!  

           मेरा यह मानना है की हम इनकी रक्षा नहीं कर सकते है परन्तु इनके बारे में जान तो सकते है! क्यूंकि दोस्तों इनकी भी दुनिया हमारे जैसे ही रही होगी! 
         
         अब यह एक सोचने का मात्र साधन रह गया है क्यूंकि दुनिया इतनी तरक्की जो कर रही जिसकी वजह से इन स्थलधारी जीवों की और कोई ध्यान नहीं देता है जिसके कारण इनके जीवन पर संकट के काले बदल छाए हुए जो अब बिलकुल समाप्त या विलुप्त होने की कगार पर  है! 
        
           दोस्तों मैं कोई दूसरे देश की बात नहीं कर रहा हूँ! मै  अपने देश की बात कर रहा हूँ क्योंकि अपने देश में भी बहुत जीव जंतु , पशु  , जानवर और पक्षी है लेकिन इनके ऊपर भी संकट के बदल छाए हुए है अब आप यही से समझ सकते हो! 


           पहले के समय में गॉवों में बैल और  भेसा बहुत हुआ करते थे लेकिन आज के दौर में आप गॉव में जाकर देखोंगे वो विलुप होते जा रहे थे! 

           उस समय बैल किसानो का प्रमुख साधन हुआ करता था या यूँ कहे की बैल किसान का दांया हाथ हुआ करता था लेकिन आज के समय में देख लो , गावों में कुछ भी नज़र नहीं आएगा! क्यूंकि इनके जगह आज की मशीनी तकनीकों ने जो ले ली है! 




     


पशु संरक्षण बहुत जरूरी है 


कई जानवर और पौधे प्रजातियां विलुप्त हो गई हैं और कई और अधिक गंभीर खतरे में हैं। धरती के वन्यजीवों की रक्षा करने और प्राकृतिक दुनिया की रक्षा करने के तरीकों को ढूंढना अब पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।





विलुप्त होने के अनेक कारण 


विलुप्त होने एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। मनुष्य विकसित होने से पहले कई प्रजातियां मौजूद थीं। हालांकि, पिछले 400 वर्षों में, जानवरों और पौधों की विलुप्त होने की संख्या संकट बिंदु पर पहुंच गई है। मानव आबादी के स्तर में नाटकीय रूप से एक ही समय की अवधि में वृद्धि हुई है और प्राकृतिक संसाधनों की अपनी क्रूर खपत के साथ मनुष्य की हिंसक प्रवृत्ति को सीधे स्थिति के लिए जिम्मेदार बनाया गया है! 





डोडो पक्षी नहीं है

डोडो का एक उत्कृष्ट उदाहरण है कि मानव व्यवहार पृथ्वी की जैविक विविधता को अपूरणीय क्षति क्यों पैदा कर सकता है। उड़ान रहित डोडो हिंद महासागर में मॉरीशस द्वीप के मूल निवासी था। यह द्वीप के पेड़ों से गिर गया फल रहता था और जब तक इंसानों को 1505 तक नहीं पहुंचा दिया जाता था, तब तक वे जीवित नहीं रहते थे। नाविक पक्षी नाविकों के लिए भोजन का स्रोत बन गए थे और पशुओं से खुद को बचाने की क्षमता की कमी थी जैसे कि सूअर, बंदर और चूहे । डोडोस की आबादी में तेजी से कमी आई और आखिरी एक को 1681 में मार दिया गया।





लुप्तप्राय जानवर

2002 में, कई जानवरों को मानव गतिविधि के परिणामस्वरूप विलुप्त होने के साथ धमकी दी जाती है। विश्व वन्यजीव कोष इन जानवरों का सामना करने की स्थिति के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए अथक प्रयास करता है और उनकी रक्षा करने के तरीके ढूंढता है। कई प्रोफाइल पर ध्यान केंद्रित करके, राइनो, पांडा, व्हेल और शेर जैसे 'करिश्माई आइकॉन', डब्ल्यूडब्ल्यूएफ का उद्देश्य 'गंभीर रूप से महत्वपूर्ण पर्यावरणीय मुद्दों' को संवाद करना है। संगठन का अंतिम लक्ष्य 'ग्रह के प्राकृतिक वातावरण के क्षरण को रोकने के लिए और भविष्य को बनाने के लिए है, जिसमें मनुष्य स्वभाव के अनुरूप रहती हैं'।







व्हेल


इंटरनेशनल व्हेलिंग कमिशन हर साल मिलता है एजेंडा में प्रजातियों के अस्तित्व को सुनिश्चित करने और जापान जैसे देशों से होने वाली जटिल समस्याओं को सुनिश्चित करने के तरीके शामिल हैं, जो 'वैज्ञानिक' प्रयोजनों के लिए कुछ व्हेल शिकार करने के इच्छुक हैं। इस तथ्य के बावजूद कि दुनिया के एक तिहाई महासागरों को व्हेल अभयारण्य घोषित किया गया है, 13 में से सात व्हेल प्रजातियां लुप्तप्राय रहती हैं। उत्तर अटलांटिक राइट व्हेल की दुर्दशा विशेष रूप से गंभीर है तेल की उनकी समृद्ध आपूर्ति के लिए शिकार, उनकी संख्या सिर्फ 300 तक घट गई है। जहाजों के साथ टकराव, जहरीले प्रदूषण और मछली पकड़ने के जाल में उलझे हुए व्हेल की मौत के अन्य प्रमुख कारण हैं।








टाइगर्स


पिछले 100 वर्षों में शेष बाघों की संख्या में 5% से 5000 से 7,000 तक की कमी हुई है और बाली, जावन और कैस्पियन बाघ पहले से ही विलुप्त हैं। दक्षिण चीन के शेर में गायब होने के लगभग करीब 20-30 अभी भी जिंदा जीवित हैं। पारंपरिक चीनी दवाओं के लिए राइनो सींग, बाघ की हड्डियों और अंगों की तरह मांग की जाती है। ये आइटम बाघ की खाल के साथ अवैध रूप से कारोबार कर रहे हैं!









 कार्रवाई करनी चाहिए


डब्ल्यूडब्ल्यूएफ सक्रिय रूप से लुप्तप्राय जानवरों के प्राकृतिक आवासों को और अधिक क्षति से बचाने और शिकारियों की गतिविधियों को रोकने के लिए दुनिया के कई क्षेत्रों में सक्रिय रूप से शामिल है। वे प्रदूषण और वनों की कटाई के खतरे को कम करने के उद्देश्य से कानूनों को लागू करने के लिए सरकारों और नीति निर्माताओं को प्रभावित करने के लिए भी काम करते हैं। घर और कार्यस्थल में हमारा अपना व्यक्तिगत प्रयास भी एक अंतर बना सकते हैं। अपशिष्ट और प्रदूषण को कम करने, जल, लकड़ी और ऊर्जा को बचाने और जब भी संभव हो, पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण करके, हम और भी अधिक जानवरों की हार की संभावना को कम कर सकते हैं, कभी भी वापस नहीं लौट सकते।