जन गण मन, हिंदुस्तान का राष्ट्रगान है जो मूलतः बंगाली में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा लिखा गया था हिंदुस्तान का राष्ट्रीय गीत वन्दे मातम है।
(राष्ट्रीय गान )
जन गण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता!
पंजाब सिन्ध गुजरात मराठा द्राविड़ उत्कल बंग
विन्ध्य हिमाचल यमुना गंगा उच्छल जलधि तरंग
तव शुभ नामे जागे, तव शुभ आशिष मागे,
गाहे तव जय गाथा।
जन गण मंगलदायक जय हे भारत भाग्य विधाता!
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।।
(राष्ट्रीय गीत)
वन्दे मातरम गीत बंकिम चन्द्र चटर्जी द्वारा संस्कृत में रचा गया है; यह स्वतंत्रता की लड़ाई में लोगों के लिए प्ररेणा का स्रोत था। इसका स्थान जन गण मन के बराबर है। इसे पहली बार 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सत्र में गाया गया था। इसका पहला अंतरा इस प्रकार है:
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!
सुजलाम्, सुफलाम्, मलयज शीतलाम्,
शस्यश्यामलाम्, मातरम्!
वंदे मातरम्!
शुभ्रज्योत्सनाम् पुलकितयामिनीम्,
फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्,
सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्,
सुखदाम् वरदाम्, मातरम्!
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्॥
(जय जय भारत माता!)
जय जय भारत माता!
तेरा बाहर भी घर-जैसा रहा प्यार ही पाता॥
ऊँचा हिया हिमालय तेरा,
उसमें कितना दरद भरा!
फिर भी आग दबाकर अपनी,
रखता है वह हमें हरा।
सौ सौतो से फूट-फूटकर पानी टूटा आता॥
जय जय भारत माता !
कमल खिले तेरे पानी में,
धरती पर हैं आम फले।
उस धानी आँचल में आहा,
कितने देश-विदेश पले।
भाई-भाई लड़े भले ही, टूट सका क्या नाता॥
जय जय भारत माता!
मेरी लाल दिशा में ही माँ,
चन्द्र-सूर्य चिरकाल उगे।
तेरे आंगन में मोती ही,
हिल-मिल तेरे हंस चुगें।
सुख बढ़ जाता, दुःख घट जाता, जब वह है बंट जाता॥
जय जय भारत माता!
तेरे प्यारे बच्चे हम सब,
बंधन में बहु वार पड़े,
किन्तु मुक्ति के लिए यहाँ हम,
कहाँ न जूझे, कब न लड़े।
मरण शान्ति का दाता है, तो जीवन क्रांति-विधाता। ।
जय जय भारत माता!
- मैथिलीशरण गुप्त
(है सरल आज़ाद होना,)
है सरल आज़ाद होना,
पर कठिन आज़ाद रहना।
राष्ट्र राष्ट्र से तूने कहा है
क्रोध निर्बलता ह्रदय की,
स्वार्थ है संताप की जड़,
शील है अनमोल गहना।।
है सरल आज़ाद होना,
पर कठिन आज़ाद रहना।
यह न समझो मुक्ति पाकर
कर चुके कर्तव्य पूरा
देश को श्री शक्ति देने
के लिए है कष्ट सहना
है सरल आज़ाद होना,
पर कठिन आज़ाद रहना।
देश को बलयुक्त करने
यदि ना संयम से चले हम
काल देगा दासता की
फिर हमें जंजीर पटना।
है सरल आज़ाद होना,
पर कठिन आज़ाद रहना।
भीत हो कानून से मन
राह पर आता नहीं है,
अग्रसर होना कुपथ पर
वासना का मान कहना।
है सरल आज़ाद होना,
पर कठिन आज़ाद रहना।
मानकर आदेश तेरा
ले अहिंसा पथ ग्रहण कर,
बंद होगा भूमि पर तब,
मानवों का रक्त बहना।
है सरल आज़ाद होना,
पर कठिन आज़ाद रहना।
-हरिकृष्ण प्रेमी
(राष्ट्रीय गान )
जन गण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता!
पंजाब सिन्ध गुजरात मराठा द्राविड़ उत्कल बंग
विन्ध्य हिमाचल यमुना गंगा उच्छल जलधि तरंग
तव शुभ नामे जागे, तव शुभ आशिष मागे,
गाहे तव जय गाथा।
जन गण मंगलदायक जय हे भारत भाग्य विधाता!
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।।
(राष्ट्रीय गीत)
वन्दे मातरम गीत बंकिम चन्द्र चटर्जी द्वारा संस्कृत में रचा गया है; यह स्वतंत्रता की लड़ाई में लोगों के लिए प्ररेणा का स्रोत था। इसका स्थान जन गण मन के बराबर है। इसे पहली बार 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सत्र में गाया गया था। इसका पहला अंतरा इस प्रकार है:
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!
सुजलाम्, सुफलाम्, मलयज शीतलाम्,
शस्यश्यामलाम्, मातरम्!
वंदे मातरम्!
शुभ्रज्योत्सनाम् पुलकितयामिनीम्,
फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्,
सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्,
सुखदाम् वरदाम्, मातरम्!
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्॥
(जय जय भारत माता!)
जय जय भारत माता!
तेरा बाहर भी घर-जैसा रहा प्यार ही पाता॥
ऊँचा हिया हिमालय तेरा,
उसमें कितना दरद भरा!
फिर भी आग दबाकर अपनी,
रखता है वह हमें हरा।
सौ सौतो से फूट-फूटकर पानी टूटा आता॥
जय जय भारत माता !
कमल खिले तेरे पानी में,
धरती पर हैं आम फले।
उस धानी आँचल में आहा,
कितने देश-विदेश पले।
भाई-भाई लड़े भले ही, टूट सका क्या नाता॥
जय जय भारत माता!
मेरी लाल दिशा में ही माँ,
चन्द्र-सूर्य चिरकाल उगे।
तेरे आंगन में मोती ही,
हिल-मिल तेरे हंस चुगें।
सुख बढ़ जाता, दुःख घट जाता, जब वह है बंट जाता॥
जय जय भारत माता!
तेरे प्यारे बच्चे हम सब,
बंधन में बहु वार पड़े,
किन्तु मुक्ति के लिए यहाँ हम,
कहाँ न जूझे, कब न लड़े।
मरण शान्ति का दाता है, तो जीवन क्रांति-विधाता। ।
जय जय भारत माता!
- मैथिलीशरण गुप्त
(है सरल आज़ाद होना,)
है सरल आज़ाद होना,
पर कठिन आज़ाद रहना।
राष्ट्र राष्ट्र से तूने कहा है
क्रोध निर्बलता ह्रदय की,
स्वार्थ है संताप की जड़,
शील है अनमोल गहना।।
है सरल आज़ाद होना,
पर कठिन आज़ाद रहना।
यह न समझो मुक्ति पाकर
कर चुके कर्तव्य पूरा
देश को श्री शक्ति देने
के लिए है कष्ट सहना
है सरल आज़ाद होना,
पर कठिन आज़ाद रहना।
देश को बलयुक्त करने
यदि ना संयम से चले हम
काल देगा दासता की
फिर हमें जंजीर पटना।
है सरल आज़ाद होना,
पर कठिन आज़ाद रहना।
भीत हो कानून से मन
राह पर आता नहीं है,
अग्रसर होना कुपथ पर
वासना का मान कहना।
है सरल आज़ाद होना,
पर कठिन आज़ाद रहना।
मानकर आदेश तेरा
ले अहिंसा पथ ग्रहण कर,
बंद होगा भूमि पर तब,
मानवों का रक्त बहना।
है सरल आज़ाद होना,
पर कठिन आज़ाद रहना।
-हरिकृष्ण प्रेमी
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