राग द्वेष मद लोभ मिटा दें
ऊर्जा भर दें जो तन में।
सुख समृद्धि का दयाक हो
कष्ट पाप का मोचन हो,
आओ ऐसा दीप जलाएं
जिससे दुनिया रौशन हो।
भाई भाई को मिला दे
पर में भी अपनत्व जगा दे
कम हो जाये दिल की दूरी,
शुद्ध प्रेममयी लोचन हो
आओ ऐसा दीप जलाएं
जिससे दुनिया रौशन हो।
चलो चलें हम उनसे मिलने,
जो नहीं चले हमारे साथ
जो दीप पड़े हैं झझकोरों में
चलो लगा दें उन पर हाथ
हृदय लगा लें आओ सबको
त्याग प्रेम का सिंचन हो
आओ ऐसा दीप जलाएं
जिससे दुनिया रौशन हो।
वो भी मेरे अपने है
जो दीप बेंचते हैं पथ पर
जो भीख मांगते हैं पथ पर
वो भी मेरे अपने हैं
फटी-फटी साड़ी है जिसकी
वो माता भी मेरी है
सूख रही है नाड़ी जिसकी
वो बहना भी मेरी है।
आँसू गालों से होकर होंठों की प्यास बुझाते हैं
वो भाई भी मेरा है
जो पढ़ने को न पाते हैं
दीवाली में बड़े-बड़े पटाख़े तो हम दागते हैं
पर भारत माँ के दुःखित हृदय को भांप नहीं पाते हैं
अबकी कुछ ऐसा कर जाएं
ताकि इस ऋण का भी मोचन हो
आओ ऐसा दीप जलाएं
जिससे दुनिया रौशन हो।
- नारायण दत्त
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